पति के दोस्तों ने टॉयलेट में चोदा
Xxx बाथरूम फक कहानी में मैं पति के साथ एक पार्टी में गयी तो वहां पति के दोस्त ने मुझे सीधे सेक्स के लिए प्रोपोज़ किया. उसे मेरी चुदास, वासना, रण्डी गिरी का पता था.
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Audio Playerमेरे लन्ड और चूत के चाहक प्यारे पाठक … सबको मेरा नमस्ते! मैं अंजलि शर्मा यानि आप सबकी प्यारी अंजू भाभी … आप सबने मिलकर आज तक जो भी प्यार दिया है उससे मैं बहुत खुश हूं। अपना प्यार आप मुझ पर बनाए रखना।
मैं भी आपके लन्ड खड़े रखूंगी और चूते हमेशा गीली रखूंगी मेरी एक्साइटिंग स्टोरीज से!
आज एक नई कहानी सुनाने जा रही हूं; आप सबको Xxx बाथरूम फक कहानी पसंद आयेगी, यह उम्मीद रखती हूं।
तो बात दरअसल यह है कि मेरे पति का बिजनेस होने के चलते उनके बहुत सारे कॉन्टैक्ट थे। कई लोगों में उनका उठना बैठना था। और उनके साथ ही साथ मुझे भी कई बार उनके साथ पार्टी, प्रोग्राम में आना जाना पड़ता।
ऐसे ही उनके एक व्यावहारिक दोस्त राकेश के यहां कुछ फंक्शन की वजह से हम गए।
प्रोग्राम एक छोटे से फंक्शन हाल में रखा गया था। राकेश और मेरी अच्छी पहचान थी।
राकेश एक अच्छा खासा बांका मर्द था। लगभग मेरे पति संजय की उमर का … वह यूपी से था। मुझे उसकी भाषा बहुत अच्छी या कहो हट के लगती। वह आते जाते भोजपुरी गाने गुनगुनाता।
मैंने कई बार नोटिस किया था कि वह मुझे बहुत ताड़ता है। मैं हूँ भी ऐसी कांटा गुजराती भाभी … मैं भी उसे लाइन देती थी।
अब मैंने सोचा क्यों न इस यू पी के भैया को चखा जाए।
फंक्शन में जाते ही वह मेरे आगे पीछे भाभी भाभी करते हुए मुझे पटाने का प्रयास करने लगा। खाने पीने के बाद मैं वाशरूम जाने लगी, तो राकेश मेरे पीछे पीछे आ गया।
मैं अंदर घुसी ही थी कि उसने मुझे कॉल लगाया- क्या भौजी, लगता है आपको बहुत गर्मी लग रही है? कहूं तो अंदर आकर कुछ मदद कर दूँ? उसने अपनी ओर से तीर छोड़ दिया।
“अच्छा जी देवर जी, मतलब आप हमारा पीछा कर रहे हो?” मैं बोली। राकेश- अरे कब से कर रहे हैं. लेकिन आप हैं कि हमें मौका ही नहीं देती। हमने सुना है आप बहुत लोगों को अपना प्यार बांट चुकी है। हमें भी थोड़ा सा ही सही … फेंक मारो।
मैं- मतलब आप हमारी जासूसी करते हैं? राकेश- अरे भाभी … वो सब हम आराम से बात करेंगे। आज एक चांस दे दो।
मैं- अच्छा जी, एक चांस में क्या होगा आज? राकेश- आपकी और हमारी दोनों की गर्मी निकाल लेंगे।
मैंने भी सोचा चलो जल्दबाजी में ही सही एक नया लौड़ा ले लेते हैं अंजू राण्ड! मैं- चलो देवर जी, आ जाओ अंदर!
मैंने कमोड पर बैठे बैठे ही दरवाजा खोला। राकेश फटाक से अंदर घुस आया।
मैं सलवार सूट में थी और सलवार पैंटी नीचे खिसका कर कमोड पर बैठी मूत रही थी।
अंदर आते ही उसने मुझे दबोचना शुरू किया। उसी पोज में वह मुझे चूमने लगा और साथ ही मेरे मम्मे दबाने लगा।
दो मिनट तक चला हमारा स्मूच खत्म कर उसने अपनी पैंट उतारी- अरे मेरी प्यारी भौजी, फिर कभी आराम से करेंगे, आज जल्दी में हैं। आप इसे खड़ा कर दीजिए। राकेश बोला।
मैं भी उसकी चड्डी खिसका कर उसके लौड़े को आजाद करते हुए उसे हाथों से सहलाने लगी। साथ ही उसके गोटे कुरेदते हुए मैंने जल्द ही उसका लन्ड खड़ा कर दिया।
काफी तगड़ा हथियार था राकेश का … उसे देख मेरे मुंह में तो पानी आ गया। आव देखा ना ताव … सीधा मैंने उसे मुंह में भर लिया।
लन्ड थोड़ा सा ही गीला करके राकेश ने मुझे उठाया और कमोड पर झुकाकर घोड़ी बनाकर उसने मेरी चूत में लौड़ा घुसा दिया।
राकेश हड़बड़ी में धक्के मारने लगा। और साथ ही मेरे बूब्स दबोचने में लगा।
“अरे देवर जी, आराम से ठोको! मैं कहीं भागी जा रही हूं क्या?” मैंने कहा। झटके देते हुए राकेश बोला- अरे भाभी, कोई देख ले तो क्या होगा? और आपका पति भी राह देख रहा है आपकी!
इतने में मेरे फोन की घंटी बजी। मेरे पति संजय का कॉल था।
मैं ठरकी औरत टॉयलेट में गैर मर्द से अपनी चूत मरवा रही थी … उसी हालत में मैंने उनका कॉल उठाया। संजय कुछ बोलता … उससे पहले ही मैंने कहा- मुझे पीरियड्स आ गए हैं। आप जरा जाकर सैनिटरी पैड लेकर आइए। उन्होंने हां कह दिया।
मुझे पता था कि यहां से दुकान आने जाने में 15 मिनट तक तो लगेंगे. तब तक मेरी चूत की और राकेश के लौड़े की आग शांत हो जायेगी।
“क्या मस्त आइडिया चलाया है भाभीजी! संजय को ही बाहर भेज दिया। आप तो सही में बहुत ही छीनार हो। चुदवाने के लिए कुछ भी कर सकती हो।” “अरे जल्दी से ठोको, बाते मत बनाओ।” मैंने कहा।
राकेश पूरे दम खम से मेरी लेने में लगा हुआ था। बिना कंडोम के वह इतना डीप अंदर तक अपना लन्ड पेल रहा था कि उसके आंड मेरे चूतड़ों से टकरा रहे थे।
चोरी छिपे एक टॉयलेट में चल रही मेरी काम क्रीड़ा मुझे बहुत ही मजा दे रही थी।
मैंने मेरे सूट और ब्रा को थोड़ा और ऊपर खिसका कर मेरे बोबे आजाद कर दिए और राकेश के हाथ लेकर उसे अपने बोबे दबाने का आमंत्रण दिया।
राकेश मेरे बोबे दबा दबा कर मेरी चूत में कील ठोकता गया। मैं झड़ गई।
तकरीबन दस मिनट बाद राकेश झड़ने को हुआ।
“भौजी मेरा निकलने वाला है!” राकेश हांफते हुए बोला। “अंदर नहीं देवर जी, अंदर मत गिराओ।” मैंने उसे कहा। राकेश- तो क्या मुंह में लोगी भौजी?
मैंने बिना कहे उसे हटाया और घुटनों पर बैठ कर उसे लन्ड हिलाने लगी। राकेश की आंखें ऊपर की ओर होने लगी, उसका लावा फूटने वाला था।
मैंने झट से उसका लौड़ा मुंह में भर लिया, अगले ही पल वह कराहते हुए मेरे मुंह में निहाल हो गया।
वीर्य पान करके मैंने उसका लन्ड साफ कर दिया। उसने पैंट पहनी और मैं नीचे कमोड पर बैठ कर हांफ रही थी।
इतने में बाहर से किसी ने दरवाजा खटखटाया। मैं झांट किसी से नही डरती थी। मगर मर्द होकर भी राकेश की हवा टाइट हो गई।
मैंने आवाज लगाई- कौन है? “राकेश भाई अकेले ही शर्मा की बीवी की ले रहे हो? हमें भी चखाओ। सुना है बड़ी चुदक्कड़ रण्डी है उसकी बीवी!” बाहर से किसी मर्द की आवाज आई।
राकेश हड़बड़ा गया, उसे पसीना आ गया। मैंने हिम्मत करके कहा- अरे, उसे अंदर ले लो। नही तो कोई देख लेगा।
राकेश ने हल्के से दरवाजा खोला और फटाक से शहजाद अंदर घुस आया। शहजाद भी संजय और राकेश का पार्टनर ही था। वह हट्टा कट्टा और इन सब में जवान था।
वह सूट बूट में एकदम हैंडसम लग रहा था।
मेरी सलवार पैरों तले थी, मैं नीचे से नंगी थी कमोड पर! मुझे देख वह मेरे पास आ गया- अंजू भाभी, क्या कड़क माल हो तुम! कहते हुए उसने मेरे चूचे दबोच लिये।
आपकी अंजू रांड से तो न नुकुर होने वाला ही नहीं था। मेरी चुप्पी को हामी समझ शहजाद आगे बढ़ता गया।
उसने मुझे उठाकर मेरे होठों की पप्पी लेना चालू किया। मैंने उसका साथ देते हुए उसे स्मूच किया।
तभी मेरा फोन बजा। संजय बाहर से कॉल कर रहे थे।
मैंने उन्हें यहां आने को बताया. तो दोनों मर्द राकेश और शहजाद हक्के बक्के रह गए।
मैंने उन्हें आंख मार कर चुप रहने का इशारा किया।
वे दोनों टॉयलेट के एक छोर पर गए। मैंने थोड़ा सा ही दरवाजा खोला और संजय से पैड ले लिया और उन्हें बाहर मेरा इंतजार करने को कहा।
दरवाजा बंद करते ही मैंने अपने सारे कपड़े निकाल दिए। मैं खुल्ली नंगी हो चुकी थी उन दो पराए मर्दों के सामने … वो भी एक टॉयलेट में!
मेरी हिम्मत की दाद देते हुए दोनों मेरे नंगे बदन पर झपट पड़े। मैं भी उन दोनों का साथ देने में लग गई … तुरंत दोनों के पैंट खोल मैं बैठ कर दोनों के लौड़े हिलाने लगी।
शहजाद ने अपने पॉकेट से कंडोम निकालकर अपने लन्ड पर लगाया और मुझे एक बार फिर से घोड़ी बनना पड़ा। आहिस्ता से लन्ड मेरी चूत पर सेट कर के उसने धक्के देने शुरू किया।
आगे से राकेश मेरे मुंह को चोदने में लगा हुआ था। Xxx बाथरूम फक में मैं मदमस्त होकर दोनों मर्दों को खुश करने में लगी हुई थी।
शहजाद का लौड़ा राकेश से भी तगड़ा था, वह मुझे हचक हचक कर चोदने लगा।
बहुत देर तक घोड़ी बन चुदाई से मेरे पैर थक गए। मैंने कहा- शहजाद भाई, मैं खड़ी रह कर थक गई हूं।
तभी शहजाद ने बीस पच्चीस ताबड़तोड झटके मारे और चूत में से लौड़ा बाहर निकाला। मैं थक कर नीचे बैठ गई।
अब दोनों लन्ड मेरे मुंह के सामने थे, मुझे उन्हें जल्द से जल्द झाड़ना था।
एक एक करके मैं दोनों खड़े लन्ड हलक तक निगल रही थी। साथ ही मैं उन दोनों की गोटियां खुजा कर उन्हें और भी ज्यादा उत्तेजित करने में लगी।
मेरी मेहनत रंग लाई और शहजाद ने मेरे मुंह में अपना पानी छोड़ दिया। लेकिन राकेश का अभी हुआ नहीं था।
तो अंजू रांड ने एक और चाल चली। मैंने राकेश की गोटियां चाटी और लन्ड मुंह में रख कर उसकी गांड में उंगली घुसेड़ दी।
इससे राकेश बेकाबू हुआ और चंद पलों में उसका पानी छूट गया। दूसरी बार मैने उसका वीर्य गटक लिया।
कितना हसीन पल था वो … मेरे पति के दो यार मेरे सामने अपने लौड़े झाड़ कर खड़े थे, वो भी एक टॉयलेट में! यह तो जैसे ‘टॉयलेट _ एक चुदाई कथा’ बन गई थी।
हम तीनों एकदम खुश और संतुष्ट थे। उसी हालत में शहजाद ने हमारा एक सेल्फी लिया।
मैं- चलो तुम लोग जाओ अभी … मुझे फ्रेश होने दो। मेरा पति बाहर इंतजार कर रहा होगा।
शहजाद- कमाल की हैं आप भाभी! बहुत मजा तो आया मगर मन नहीं भरा। मैं- अरे बाबा, फिर कभी वक्त निकाल कर आऊंगी। तब जो मन करे, जैसा मन करे अपनी भाभी को ठोक लेना। ओके? राकेश- ठीक है भौजी! लेकिन आप को हम दोनों से वादा करना पड़ेगा कि वक्त निकाल कर आप हमारे लिए हमारी रखैल बन कर आओगी। मैं- अच्छा बाबा प्रोमिस! एक डेट फिक्स करते हैं। उस दिन मैं आपकी भाभी नहीं … रखैल बन कर आऊंगी। बस!
यह सुन कर वे दोनों खुश हो गए और जाते जाते मेरे चूतड़ पर मारकर चले गए। मैं भी फ्रेश हो कर बाहर आई और संजय के साथ घर चली गई।
आज के लिए इतना ही! अब आगे मैंने उन दो लौड़ों के साथ कैसे, कहां अपनी मरवाई … ये मेरी अगली चुदाई की दास्तां में बताऊंगी। तब तक के लिए चुदो और चोदो। Xxx बाथरूम फक कहानी पर अपने विचार मुझे लिखें. नमस्ते। [email protected]
मेरी पिछली कहानी थी: भानजे संग सुहागरात मनाकर लगाया गांड का भोग