पहले गांड मारी फिर गोद में बैठकर खाना खिलाया
ऐस सेक्स बैक होल स्टोरी में मैंने अपने टॉप को अपना पति मान लिया और उसकी के साथ उसकी बीवी की तरह रहने लगी. एक दिन मैं उनके लिए खाना लाई तो पहले उन्होंने मेरी गांड मारी.
बहुत दिनों बाद कहानी लिखी है. आपने मुझे मिस किया होगा.
मैं पहले चन्द्रप्रकाश था और फिर सत्यम ने गांड मारकर चंदा बना दिया.
वो दिन कितने शानदार थे जब मैंने शुरू शुरु में गांडूगिरी प्रारम्भ की थी. किसी ने सच कहा है कि अच्छे दिन बहुत तेजी से बीतते हैं.
सत्यम के साथ मैंने जितनी खुशियाँ प्राप्त की थीं, उतनी फिर अब तक की पूरी जिन्दगी में नहीं मिली. दिन में होली जैसी खुशियाँ और रात में दीपावली जैसी जगमगाहट. काश कोई लौटा दे वो बीते हुए दिन!!
संयोगवश होने वाली एक घटना कैसे जीवन की दशा और दिशा बदल देती है. सत्यम से मेरी वह मुलाक़ात कोई पूर्व नियोजित तो थी नहीं. मुझे फिल्म देखने का शौक था और इसी शौक ने टाकीज में सत्यम से मिला दिया.
हम दोनों अलग अलग उद्देश्यों से गये थे. मेरा ध्येय अमिताभ बच्चन की पुरानी फिल्म का आनन्द लेना था. और सत्यम जी … सदा की तरह उनकी एक ही तलाश थी.
कोई नमकीन सा … नाजुक सा, मस्त मस्त सा, लोलीपोप सा लौंडा मिल जाये और उसकी ले ले.
सत्यम की नजर मुझ पर पड़ गयी. सत्यम जी ने मेरी परिस्थिति का लाभ उठाया, मुझे पटाया और मुझे अच्छे खासे युवक से गांडू बना दिया. यह पूरा घटनाक्रम मैंने अपनी पहली दो कहानियों ऐसे बना चंद्रप्रकाश से चन्दा रानी और बन गयी सत्यम की दुल्हन में विस्तार से लिखा है.
इसके बाद मेरी तीन कहानियाँ और आईं. लिया है तो इस कहानी को यहीं रोक दें और पहले उन्हें पढ़ें. कहानियों के लिए आप अपनी प्रिय वेबसाइट अन्तर्वासना के होम पेज पर जाइए. वहां पर दी गयी कहानियों की श्रेणियों में से ‘गे सेक्स स्टोरी’ को क्लिक कीजिये. आसानी से ये कहानियाँ आपको मिल जायेंगी. चलिए !! पढ़ ली ना आपने वो कहानियाँ.
अब आगे की ऐस सेक्स बैक होल स्टोरी सुनिये.
सत्यम जी के सुन्दर लंड और उनके प्रेमिल व्यवहार ने मेरे हावभाव बदल दिए. मैं खुद को उनकी बीवी चांदनी जी की जगह मानने लगा और मेरा बोलने का लहजा भी बदल गया. मेरी चाल भी बदल गयी. मैं लड़के के शरीर में लडकी बन गया और उसी तरह बोलने लगा.
मेरी और सत्यम की शादी हुए पंद्रह दिन व्यतीत हो गये थे. वह सोलहवीं रात थी.
यहीं से शुरू हुआ मेरे हनीमून का प्लान और मैंने देखा एक ऐसा ख्वाब जो कभी पूरा नहीं हो सका. चलिए इस कहानी के जरिये मैं ले चलती हूँ आपको मेरे हनीमून की यात्रा पर … और रूबरू करवाती हूँ कांच के महल की तरह चकनाचूर हुए हसीन ख्वाब से!
सत्यम की गृहस्थी मैंने सम्भाल ली थी. मैं ही साफ़ सफाई करती थी, खाना बनाती थी, कपड़े धोती थी. जब मैं सत्यम की अंडरवियर धोती थी तो अलग ही फीलिंग होती थी.
उस रात करीब आठ बजे मैंने खाना तैयार किया. दाल-चावल, सब्जी-रोटी और बाजार से लाई हुई मिठाई को थाली में सजाकर सत्यम के पास पहुँची.
सत्यम अपनी पलंग पर लेटे हुए थे. ऊपर का शरीर पूरा नंगा था और नीचे लुंगी लपेटे हुए थे. गजब की कद-काठी थी मेरे सत्यम की. कसा हुआ बदन … कहीं कोई अतिरिक्त चर्बी नहीं थी. उनकी आँखें बंद थीं.
पास रखी टेबल पर मैंने धीरे से थाली रखी और सत्यम के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.
सत्यम को सक्रिय होने में दस सेकंड भी नहीं लगे. वे मेरे होंठों को चूसने लगे. बहुत ही कोमलता से उनके मजबूत हाथ मेरी पीठ पर घूम रहे थे.
उस वक्त मैंने गाउन पहना हुआ था. रंग बिरंगे फूलों की छपाई वाला खूबसूरत गाउन.
वे अपने हाथ की उंगली मेरी ब्रा की स्ट्रिप पर फेरने लगे. यह उनको सबसे प्रिय था. वे स्ट्रिप को दो उँगलियों से पकड़कर खींचते और फिर छोड़ देते.
फिर उस पर उंगली फिराते और फिर स्ट्रिप खींचते.
मैंने अपने होंठ पूरी तरह सत्यम के हवाले कर दिए थे और अपने एक हाथ से उनके सीने पर उगे घने बालों पर फिराने लगी. वे कभी भी अपने निप्पल नहीं छूने देते थे.
एक दो बार मैंने उनके निप्पल मसलने और चूसने की कोशिश की थी तो उन्होंने कहा था- नहीं चंदा! निप्पल तो औरत के मसले जाते हैं. औरत के बूब्स चूसे जाते हैं. मैं मर्द हूँ. प्लीज मेरे निप्पल से मत खेलो. तुम्हारे खेलने का खिलौना नीचे है. जरा अपने हाथ नीचे ले जाओ. वाकई मैंने सत्यम जैसा मर्द नहीं देखा.
मेरा हाथ मेरे खिलौने की तरफ स्वतः बढ़ गया.
लुंगी इस तरह ऊपर उठी हुई थी जैसे उसके नीचे क़ुतुब मीनार खड़ा हो. मस्त लम्बा और सख्त लंड. मेरा हाथ उनके लंड पर चलने लगा.
सत्यम बेकाबू होने लगे … उनकी साँसें मेरी भी तेज हो गयी थीं. सत्यम ने बहुत अहिस्ता से मुझे अपने से अलग किया और खड़े हो गये.
पहले लुंगी और फिर अंडरवियर के वजन को अपने शरीर से कम किया.
मेरे जीवन का आधार मेरे सामने था.
सत्यम ने आँखें मूँद ली. पंद्रह दिन हो गये थे मुझे उनके साथ रहते हुए. यह संकेत था कि चन्दा रानी चूसो अब मेरे लंड को.
मैं उनके सामने घुटनों का बल बैठ गयी. मैंने उनकी मजबूत जाँघों को अपने कोमल हाथों से थामा, अपनी पलकों को बारी बारी से उनके लंड के सुपारे पर रखा, फिर उसे चूमा.
अब मेरे हाथ उनके मजबूत कूल्हों पर पहुँच चुके थे. हाँ एक बात बता दूँ कि कभी भी वे मेरी उंगली को अपनी गांड के छेद तक नहीं जाने देते थे.
वे हर वक्त एक मर्द थे. और मुझे मर्द ही पसंद हैं.
मैं ऐसे लोगों से कभी नहीं मिलती जो गांड मारने की बात करते हैं और खुद भी मरवा लेते हैं. जो यह कहते हैं कि मेरी गांड में ही उंगली करो. नहीं … मुझे पसंद नहीं है ऐसे लोग!
सत्यम के बाद मुझे दो चार बार ऐसे लोग मिले … तो मैं सेक्स का खेल बीच में छोड़कर आ गयी. मुझे केवल वही पसंद आते हैं जिन्हें अपने लंड पर भरोसा हो. लंड उनका और छेद मेरे … एक छेद गांड का और एक छेद मुंह का.
आप अपने सामान का उपयोग मेरी तिजौरियों में करिये, अपनी तिजौरी खोलकर मत बैठ जाइए.
बहरहाल वापस कहानी पर आ जाइए.
मैंने उनका लंड चूसना प्रारम्भ किया. अब मैं इस कार्य में परफेक्ट हो गयी थी.
पांच मिनट तक चूसने के बाद मैंने अपनी जुबान लंड के यूरिन और वीर्य निकालने वाले छिद्र पर फिराना जैसे ही शुरू किया, सत्यम की सिसकारियां शुरू हो गयी.
जैसे जैसे मैंने गति बढ़ाई सत्यम आनन्द के अतिरेक में उछलने लगे. “आह … आह … मेरी चांदनी … मेरी दुल्हन … मार डालोगी तुम तो मुझे!” उनके ये मीठे वाक्य मुझे ज्यादा जोश दिला रहे थे.
टेबल पर रखा खाना ठंडा हो रहा था और हम दोनों भट्टी की तरह तप रहे थे. सत्यम का लंड थरथरा रहा था, उनके लंड की सब नसें फूल चुकी थीं और मेरी गांड लप लप कर रही थी.
दस मिनट तक की चुसाई के बाद सत्यम ने अपने हाथ मेरे सिर पर रखे और सिर को हल्के से पीछे खींचा. मैंने लंड को अपने मुंह से आजाद कर दिया.
सत्यम ने मुझे गोद में उठा लिया. मैं उछलकर उनके लंड से ऊपर होकर उनके पेट और सीने से चिपक गयी.
उनका लंड अब मेरी गांड की दरार के बीच में टकरा रहा था. कुछ देर हम दोनों इसी पोज में रहे.
फिर सत्यम ने मुझे बिस्तर पर उल्टा लिटा दिया और मेरे पैरों को चौड़ा करके दो पैरों के बीच बैठ गये.
उनका लंड तो मेरे थूक से तरबतर था ही! उन्होंने मेरी गांड को अपने थूक से चिकना किया.
पिछले पंद्रह दिनों में तीस से अधिक बार ठुक चुकी गांड अभ्यस्त होती जा रही थी और आसानी से समेट लेती थी सत्यम के खिलौने को!
उन्होंने मन भरकर मेरी गांड मारी. मगर आखिर मर्द की एक लिमिट होती है … सत्यम भी झड़ गये. मैं तो उनके साथ रहकर ही तृप्त थी और सत्यम मेरी मारकर तृप्त हो चुके थे.
हर बार गांड मारने के बाद सत्यम मुझे अपनी गोद में बैठाते थे. आज भी ऐसा ही किया.
मैंने कहा- सुनिए जी! खाना पूरा ठंडा हो गया है. छोड़िये मुझे! मैं गर्म करके लाती हूँ. सत्यम- नहीं! अब कुछ मत करो. यहीं बैठो!
उन्होंने मुझे अपने सीने से कसकर चिपटा लिया. कितना सुकून था उस आलिंगन में.
मैं- भूख नहीं लगी आपको? खाना खा लीजिये. अभी आपने इतनी मेहनत की. क्या गांड मारना सरल काम है. कितना जोर लगता है. खाना खाओ आप जी! सत्यम- लाओ! अपने हाथों से खिला दो खाना … और मेरी गोद में ही बैठी रहो!
मुझे सत्यम पर खूब प्यार आया. सत्यम की गोद में बैठे बैठे मैंने उन्हें खाना खिलाया.
मैंने भी उनकी गोद में बैठकर ही खाना खाया. मैं आनन्द से भर गई.
कभी आप भी सेक्स करने के बाद ऐसे ही डिनर लीजिये … खाने का स्वाद कई गुना बढ़ जाएगा.
कैसी लगी मेरी नई ऐस सेक्स बैक होल स्टोरी? आप मुझे मेल भेजकर बताएं. मैं हर मेल का जवाब देती हूँ. हाँ, आप मुझे चंदा ही कहिये, मुझे फील आता है. चंद्रप्रकाश सुनना मुझे पसंद नहीं है.
कहानियाँ लिखती रहूंगी ताकि अन्तर्वासना पर अमर हो जाऊं. [email protected]